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Rahul Sankrityayan : भागो नहीं…., दुनिया को बदलो….

Rahul Sankrityayan:

 

Rahul Sankrityayan : ऐसा क्रांतिकारी सूत्र देने वाले और अपने जीवन व लेखन के जरिए दुनिया को यथासंभव बदलने का प्रयास करने वाले महापंडित राहुल सांकृत्यायन एक असंभव मनुष्य और असंभव लेखक की जीवन यात्रा का नाम है. आज उनका जन्मदिन है. (Rahul Sankrityayan)

 

आजमगढ़ (उ.प्र.) जिले के एक छोटे से गांव में एक ब्राह्मण परिवार में जन्मे केदारनाथ पांडे जिज्ञासु व घुमक्कड़ प्रवृत्ति के कारण कम उम्र में ही घर छोड़कर वैरागी साधु बन गए. फिर वेदांती, आर्य समाजी, किसान नेता और बौद्ध भिक्षु से लेकर साम्यवादी चिंतक तक उनका लंबा यायावरी सफल रहा .

 

1930 में श्रीलंका में बौद्ध धम्म की दीक्षा और भिक्षु जीवन में प्रवेश करने के बाद वे रामोदर साधु से राहुल हो गए.सांकृत्य गोत्र होने के कारण सांकृत्यायन कहलाए. (Rahul Sankrityayan)

 

भारतीय समाज का यह भी एक कड़वा सच है कि ब्राह्मण वर्ग ने अपने स्वार्थ के ख़ातिर समाज को अज्ञान व अंधविश्वास के अंधकार में धकेला, वहीं ब्राह्मण वर्ग के ही अनगिनत विचारकों ने विद्रोही के रूप में अमानवीय ब्राह्मणी व्यवस्था की बखिया उधेड़ी और मानवतावादी धम्म व समाज के पैरोकार बने,राहुलजी उनमें से एक चमकते सितारे है.

 

‘भागो नहीं दुनिया को बदलो’ ‘दिमागी गुलामी’ ‘वोल्गा से गंगा तक’ ‘तुम्हारी क्षय’ ‘दर्शन दिग्दर्शन’, बौद्ध साहित्य सहित शिक्षा, धर्म, समाज, दर्शन क्षेत्र में लगभग 150 किताबों के लेखक व 36 भाषाओं के ज्ञाता राहुल जी की अद्भुत विद्वता व ज्ञान के भंडार को देखकर काशी के पंडितों ने उन्हें महापंडित की उपाधि दी थी. (Rahul Sankrityayan)

 

ऊंची कद काठी वह चेहरे पर हमेशा विद्वता के ओजस्व भाव लिए राहुलजी कभी थके नहीं, रुके नहीं. ज्ञान पाने की खोज में घुमक्कड़ ही रहे. उस समय के सारे हिंदी साहित्यकार उनकी विद्वता के आगे बौने थे.

 

बुद्ध की शिक्षाओं को जानने व प्रचार करने की इतनी प्रबल इच्छा थी कि वह जानलेवा दुर्गम बर्फीले रास्तों को पार कर तीन बार तिब्बत गए और सोने की स्याही से लिखे ढेरों बौद्ध ग्रंथों को खच्चरों पर लादकर भारत लाए. धम्म के मूल त्रिपिटक ग्रंथों का हिंदी अनुवाद किया. रात दिन लिखना व अनुवाद करते रहे. आज भी तिब्बत से लाया हुआ बहुमूल्य बौद्ध साहित्य पटना के संग्रहालय में अनुवाद के इंतजार में है. (Rahul Sankrityayan)

राहुल सांकृत्य.सिरि लंका व सोवियत रूस में उन्होंने कई साल तक बौद्ध साहित्य का अध्यापन कार्य किया. देश विदेश की दर्जनों भाषाओं के ज्ञाता व हिंदी में इतना उत्कृष्ट ,दुर्लभ व विपुल साहित्य लिखने वाले राहुलजी आर्थिक मुश्किलों से जूझते रहे. जीवन के अंतिम वर्षों में सारी याददाश्त जाती रही, गंभीर बीमारियों ने घेर लिया लेकिन कभी किसी सरकारी सहायता या इनाम के लिए हाथ नहीं फैलाया. भारत में बुद्ध की शिक्षाओं को फिर से स्थापित करने में उनका महान योगदान है.

 

उन्होंने भारतीय समाज में जाति, धर्म के नाम पर व्याप्त कर्मकांड, आडंबर,अंधविश्वास और जाति व्यवस्था को गुलामी का मुख्य कारण बताया और वह जीवन भर इनके खिलाफ कलम चलाते रहें. धर्म की ओट में शोषण पर हमेशा करारा वार करते रहे. वह पढे लिखे समाज की मानसिक गुलामी पर हमेशा चोट करते रहे. (Rahul Sankrityayan)

 

गरीब,किसान, शोषित के रहनुमा राहुलजी समानता, स्वतंत्रता व बंधुत्व पर आधारित खुशहाल समाज का सपना देखते थे. (Rahul Sankrityayan)

 

 सबका मंगल हो….सभी प्राणी सुखी हो…

Land of Buddha
डॉ. एम एल परिहार

©डॉ. एम एल परिहार

परिचय- जयपुर, राजस्थान.

 

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