मानव सेवा की मूर्ति Florence Nightingale ….

©डॉ. कान्ति लाल यादव
परिचय- असिस्टेंट प्रोफेसर, उदयपुर, राजस्थान.
Born in England on May 12, 1820, Florence Nightingale is considered the father of the modern nursing movement. In his memory, every year May 12 is celebrated as ‘World Nursing Day’ worldwide.
इंग्लैंड में 12 मई 1820 में में जन्मी फ्लोरेंस नाइटिंगेल को आधुनिक नर्सिंग आंदोलन का जन्मदाता माना जाना जाता है। उनकी याद में प्रतिवर्ष 12 मई को दुनियाभर में ‘वर्ड नर्सिंग डे’ के रूप में मनाया जाता है। Florence Nightingale
Florence Nightingale द फ्लोरेंस नाइटिंगेल को “द लेडी विथ द लैंप” के नाम से प्रसिद्धि प्राप्त हुई। वे एक समझदार सेवा धर्मी पढ़ी-लिखी विदुषी महिला थी। उनकी नर्सिंग के अलावा लेखन में भी दिलचस्पी थी। वे नर्स बनकर पीड़ित रोगियों,बीमार लोगों की सेवा, मदद करना चाहती थी किंतु उनके माता-पिता नहीं चाहते थे। वे धनाढ्य घर में पैदा हुई थी।
उन दिनों अस्पतालों में इतनी सुविधा उपलब्ध नहीं होती थी और नहीं नर्सों को ढंग का वेतन मिलता था। किंतु फ्लोरेंस नाइटिंगेल ने अपने धनाढ्य परिवार में पैदा होकर व विलासिता के जीवन को त्याग कर कठिन पथ को चुना। बीमारों की, तकलीफों में सेवा का जीवन भर का जिम्मेदारी का जो कदम उठाया वह अद्भुत था।एक दिन उन्होंने लिखा -“आज ईश्वर मुझसे बोला और मुझे अपनी सेवा में बुलाया।” प्रेरणादायक था। उनका जन्म इंग्लैंड में हुआ था। जर्मनी जाकर नर्सिंग का कार्य सीखा और अपनी मातृभूमि इंग्लैंड में आकर “केयर ऑफ द सिक” की सुपरिंटेंडेंट बंद कर नर्सों को प्रशिक्षण देकर एक नई मिसाल को खड़ा करने का पुनीत कार्य किया।
1854 में घायल सैनिकों की सेवा हेतु रात्रि काल में गंभीर रोगियों को इलाज हेतु लैंप की रोशनी में रात-रात भर इलाज कर उन्हें स्वास्थ्य लाभ देने की सेवा साधना से उन्हें “लेडी विद द लैंप” के नाम से जाना जाने लगा। 1858 में हुए क्रीमिया के युद्ध में उन्होंने 38 महिलाओं के एक दल के रूप में स्वास्थ्य सेवा से बेजोड़ कार्य किया। उन्होंने1860 में नर्सों के लिए नाइटिंगेल स्कूल खोला। Florence Nightingale
नर्सों का सम्मान बढ़ाने वाली व नर्सिंग में सेवा सुश्रुषा की अलग जगाने वाली वे दुनिया की एक महान् सेवा धारी, दयालु, मानव सेवा से ओतप्रोत नर्स थी।1860 में फ्लोरेंस के प्रयासों से ही उस समय ‘आर्मी मेडिकल स्कूल’ की स्थापना हुई थी। फ्लोरेंस ने रोगियों के लिए खाने की व्यवस्था तक की। रोगियों की सेवा करती हुई वे रोग से ग्रसित तक हो गई किंतु हिम्मत नहीं हारी। दुखियों की सेवा करने का जो उन्हें सुकून मिलता था उसे वह दुनिया की सबसे बड़ी खुशी मानती थी।
रात-रात भर जाग कर, लालटेन की रोशनी में गंभीर बीमारी से ग्रस्त लोगों के बीच घायलों की सेवा की। महिलाओं को नर्सिंग के क्षेत्र में कार्य करने की प्रेरणा और सम्मान दिलाया जो आज भी प्रासंगिक है। जब रोगियों की इतनी सेवा पर कोई ध्यान नहीं देता था तब ऐसे समय में श,अभावों में उन्होंने स्वास्थ्य सेवा के माध्यम से कर दिखाया। जब रोगियों के लिए कोई व्यवस्थाओं का इतना कोई इंतजाम नही करता था तब फ्लोरेंस ने चिकित्सा के क्षेत्र में सेवा की मशाल को जलाकर दुनिया को रोशनी देने का काम किया।Florence Nightingale
उन्हें महारानी विक्टोरिया ने “रॉयल रेड क्रॉस” से सम्मानित किया। उन्होंने “नोट्स ऑन नर्सिंग” पुस्तक लिखी जो नर्सिंग पाठ्यक्रम की प्रथम पुस्तक है। 1907 में किंग एडवर्ड ने फ्लोरेंस को ऑर्डर ऑफ मेरिट से सम्मानित किया। वे इस अवार्ड को प्राप्त करने वाली प्रथम महिला थी। वह सिर्फ महिलाओं के लिए ही नहीं बल्कि संपूर्ण मानव हित में प्रेरणा स्रोत थी। रोगियों, दुखियों, गरीबों की सेवा ही मानव सेवा है। यह ईश्वरी सेवा से बढ़कर है। चिकित्सा का धर्म ही रोगियों की सेवा है।किंतु आज यह सेवा कहीं -कहीं दिखावा तो कहीं लूटमार तो कहीं इलाज के नाम पर धन संग्रह का ड्रामा भी चल रहा है।
चिकित्सा सेवा के नाम से धंधा चल रहा है। कोविड जैसी विश्व महामारी में कुछ चिकित्सक व नर्से जान हथेली पर रखकर सेवा कर रहे थे तो बहुत से धन कमाने का मौसम समझ रहे थे। इस पवित्र पेशे को बदनाम करने वाले भी आज कम नहीं है।Florence Nightingale
चिकित्सा के क्षेत्र में काम करने वाले लोगों को लोग भगवान समझते हैं किंतु कुछ कमाने में मानवीय संवेदना को तिलांजलि देने पर भी डटे हुए हैं। उनके लिए पैसा ही भगवान है। हर इंसान का अपना स्वास्थ्य अधिकार है। इस अधिकार की रक्षा करना चिकित्सा क्षेत्र के लोगों का ज्यादा बड़ा दायित्व है। न कि रोगी को गरीब देख कर भगा देना और पैसे वाले को देख कर लूट लेना। Florence Nightingale
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