मेहनत | ऑनलाइन बुलेटिन
©हरीश पांडल, विचार क्रांति
परिचय– बिलासपुर, छत्तीसगढ़
खून जलाकर
पसीना बहाता है
तब कहीं जाकर
दो वक्त की
रोटी कमाता है
रोज कमाता है
तब ही
खा पाता है
इस वैश्विक बीमारी
के कारण
सभी का आवागमन
मंद हो गया है
रिक्शा चालक की कमाई
बंद हो गया है
उसके पास उसकी कोई
जमापूंजी नहीं है
उसके पास
किसी खजाने की
कुंजी नहीं है
इस पर यह सरकारी
फरमान कि
घर में रहें, सुरक्षित रहें
बीमारी से सुरक्षित
तो वह रह जायेगा
किंतु भूख से सुरक्षित
वह अपने और अपने
परिवार को
कैसे रख पायेगा ?
भूख से सुरक्षित रहने
का फरमान भी
जारी करो ?
इन जैसे गरीबों, मजदूरों
के हालातों से
यारी करो।
ये घरों में सुरक्षित रहें
ये घरों में भूखे ना रहें
इस विषय पर भी
कोई गाइडलाइन
जारी करो ?
35 किलो चावल
1 किलो शक्कर और
1 किलो नमक से
क्या ये गरीब मजदूर
भूख से सुरक्षित
यह सकते हैं ?
बीमारी से भले
बच जाये किंतु
भूख से मर सकते हैं
स्टैचू ऑफ यूनिटी
की निर्जीव मूर्ति में
बेहिसाब रुपये फेक
सकते हो ?
फिर इन सजीव
गरीबों मजदूरों
को कैसे भूखे मरते
देख सकते हो?
56 इंच के सीने
वाले
क्या इस प्रश्न का
उत्तर दे सकते हो ??