होली के रंग | ऑनलाइन बुलेटिन
©सतीश यदु
परिचय– बेमेतरा, छत्तीसगढ़.
परसा फुले लाली लाली, सरसों घलो पींवरागे।
कोयली कुहके अमरईया, फागुन तिहार आगे ।।
का बैरी का मितान मोर संगी, सबो ल गला लगाले ।
सात रंग म सजे हे होली, आज तो दुःख बिसराले।।
भाई चारा के सिखावन लेके, आथे फागुन महीना।
मन के पीरा निकाल फेंकौ, झन होवव अनबोलना।।
हिरण्यकश्यप बड़ अहंकारी, काहय मैं भगवान ।
बेटा प्रहलाद ल बिकट सतावय, मोर कहेनाल मान ।
होलिका ह आगी म जरगे, भक्त प्रहलाद के जीत।
ह इही उछाव जम्मों मनाथन, लगाके मया पिरीत।।
बाजय नगाड़ा मादर झांझ, फाग गीत के संग ।
बिधुन होके नाचय सबो, रंगगे जम्मों होली रंग ।।
डंडा नाचत कुहकी परत है, गांव के गली खोर।
मादर के थाप म झूमे सबो, चारो मुड़ा हे शोर ।।
बड़ नीक लागे महीना संगी, चहकत हे चिरईया ।
लाली लाली टेसू फुले हे, नीक लागे पुरवईया।।
खीर बतासा मेवा मिष्ठान, बांटत हे भर भर थारी ।
रंग भरके पिचका मारे, गुलाल लगावय पारी पारी ।।