मैं वफ़ा की क़ीमत चुकाती हूँ | ऑनलाइन बुलेटिन
©नीलोफ़र फ़ारूक़ी तौसीफ़
परिचय– मुंबई, आईटी सॉफ्टवेयर इंजीनियर.
वफ़ा के चिराग़ तले, ख़ुद अपना मुजस्समा बनाती हूँ।
रोशनी फैलाकर ज़माने में,वफ़ा की क़ीमत चुकाती हूँ।
मेरी हर एक ग़लतियों का तमाशा बनाता है वो,
ख़ुद ही रूठ कर अक्सर मैं ख़ुद को मनाती हूँ।
उसका हर रंग छुपा है, मेरी हर एक तहरीर में,
लिखती हूँ जितना स्याही से, अश्कों से मिटाती हूँ।
मुद्दतों से नींद आई नहीं है, जानता है तकिया मेरा,
सब रहते हैं जब ग़फ़लत में, तन्हाई उसे सुनाती हूँ।
लबों पे मुस्कान लिए फिरते हैं हर पल अंजुमन में,
गर्द व गुब्बार धो डालें है, यही सोंचकर मुस्काती हूँ।