लाशों का ढेर…

©गायकवाड विलास
परिचय- मिलिंद महाविद्यालय लातूर, महाराष्ट्र
हुआ वो रेल हादसा बेमौत मारी गई जिंदगियां,
ऐसे ही कई हादसों ने घर कितनों के उजड़ गए।
वही हुआ आखरी सफर उनके जिंदगी का यहां पर,
और उसी सफ़र में ख्वाब उनके मिट्टी में मिल गए।
बार-बार क्युं होते है ऐसे हादसे सफर में,
ये कैसी लापरवाही लोग यहां कर जाते है।
फिर भी होता नहीं सुधार ऐसी लापरवाही में,
उसी लापरवाही के वजह से कई संसार खत्म हो जाते है।
कुछ रुपयों की मदद से आती नहीं वो जिंदगियां लौटकर,
उसी रुपयों से बढ़कर हर कोई जिंदगी यहां होती है।
कभी पूछो उनसे अपनों के खोने का ग़म क्या होता है,
इसीलिए ऐसे हादसों को ही यहां रोकना जरूरी है।
अब रेल का सफ़र भी नहीं रहा सुरक्षित यहां पर,
उसी सफ़र में भी बार-बार दिख रहा है हादसों का मंजर।
ये हादसों का सिलसिला कब थम जायेगा इस संसार में,
और बेखौफ होकर कब करेंगे लोग सफर अपने जीवन में।
सरकारों की इतनी-सी मदद से उम्र सारी कटती नहीं,
और उसी मदद से वही खुशियां कभी लौटकर आती नहीं।
जिंदगियों के आगे कोई मोल नहीं है उन रुपयों का,
क्योंकि हर वो जिंदगी यहां पर अनमोल होती है।
अब तो ऐसा लगता है,ये हादसों की शृंखला और हादसों का शहर है,
ऐसे में जिएं भी तो कैसे जिएं अब इस संसार में यहां पर।
जिधर देखो उधर कहीं न कहीं पे हो रहे है हादसे,
ऐसे में कौन जाने कब होगा इस जिंदगी का आखरी सफर।
हुआ वो रेल हादसा बेमौत मारी गई जिंदगियां,
ऐसे ही कई हादसों ने छीन ली जिंदगी की खुशियां।
इसीलिए मत करो अपनी जिम्मेदारी में लापरवाही,
क्योंकि वही लापरवाही लाशों का ढेर दिखाकर जाती है – – –

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