लफ़्ज़ों के शहर में ही…
©गायकवाड विलास
परिचय- मिलिंद महाविद्यालय, लातूर, महाराष्ट्र
लफ़्ज़ों के शहर में ही ये जिंदगी हसीन लगती है,
अब इन्सानों की नजदीकियां भी मतलब सी लगती है।
गमों की आहट हो या सुखों की बरसातें हो ,
दोनों भी हालातों में लफ़्ज़ों की इनायत होती है।
चाहत तो बहोत होती है कोई निगाहें,निगाहों से मिलें,
मगर ये डर भी बहोत है की,कहीं ये बेचारा दिल ना जलें।
हर जगह बदलती निगाहें,ऐसे में प्यार की आरज़ू क्या करें,
पतझड़ सी बनी जिंदगी में,फिर से बहारों की आरज़ू क्या करें।
जो भी मिला हमको और एक नये घाव का निशां छोड गया,
बदल गई प्रीत इस ज़माने में,उसी प्रीत का मतलब हमें समझा गया।
लफ़्ज़ों के शहर में ही ये जिंदगी हसीन लगती है,
अब इस नए जमाने की निगाहें भी,ज़हर सी लगती है।
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