अतुलनीय है…

©पद्म मुख पंडा
अतुलनीय है, मां का प्रेम और बलिदान,
पाता है जीवन, जब, अबोध संतान!
पिता का स्नेह होता है जैसे वरदान,
जिसमें पलकर शिशु, होता है गुणवान।
दुसाध्य को साध्य बना देती है मां,
हठी को प्रेम से मना लेती है मां!
हर मुश्किल में, बिखेरकर मुस्कान,
कर देती है मां सब कुछ आसान!
जीवन यापन करते, सबका पेट भरते,
मां ने जीवन बिताया, सबका कष्ट हरते !
अभावों में भी, कभी नहीं अभाव पाया,
सबको भरपेट और खुद कम ही खाया!
मायका और ससुराल का रखा था मान,
सबको प्यारी थी, पाती थी सबसे सम्मान।
आज न पिता जी और न ही मां पास है,
क्या कहें, हमारा मन बहुत ही उदास है!

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