जलियाँवाला बाग…
©अनिल बिड़लान
बैसाखी का दिन और मन में जज्बा़ खूब भरा था
आजादी के दिवानो से जलियाँवाला बाग भरा था
बच्चे-बूढ़े माँ-बहनों ने मिल कर अलख जगाई थी
मौत से लड़ने को जवानों में यूँ जोश खूब भरा था
चपे चपे पे भारत माँ के सपूत बाग खिल उठा था
तिल भी गिरने की जगह ना थी मैदान यूँ भरा था
निडरता से लोग भारत को आजाद करने आए थे
आने जाने का एक रास्ता खूब बारूद से भरा था
हाथों में ले बंदूक अंग्रेज मारने उतावला खड़ा था
रौधररूप ले मौत ने आज डायर का रूप भरा था
मिलते हुकम डायर का अपनो ने अपनो को भूना
दनदानती गोलियों ने यूँ देशभक्तो का तन भरा था
गोलियों के शोर में दब गई थी हजारों चीख पुकारे
जलियाँवाला बाग का कुँआ शहीदों से खूब भरा था।।
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