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आग और पानी के बीच वार्तालाप | ऑनलाइन बुलेटिन

©नीलोफ़र फ़ारूक़ी तौसीफ़

परिचय- मुंबई, आईटी टीम लीडर


 

? – क्या हाल है ? पानी रानी, बड़ी ख़ामोश नजर आ रही हो।

 

? – क्या बताऊं आग, समझ नहीं आता कुछ चीजों को घमंड क्यों होता है।

 

? – अरे, जिसे तुम घमंड कह रही हो वो असल में शक्ति प्रदर्शन है।

 

? – शक्तिमान होना अलग बात है परंतु, उसपे घमंड करना बहुत गलत है।

 

? – अगर तुम्हारा तालुक मुझसे है तो इतना बता दूं, सुरज की अग्नि से भला कौन मुक़ाबला कर सकता है, मैं तो वो हूं जो अच्छे – अच्छों को जला कर राख कर दूं, फिर उस राख को भी ख़ाक कर दूँ।

 

? – ये तुम नहीं तुम्हारा अहंकार बोल रहा है ये मत भूलो की जो मैं बरस जाऊं तो तुम्हारी तपिश पल में बुझा दूं।

 

? – (थोड़ा परेशान होते हुए)- चलो माना तुम बुझा दोगी लेकिन ये दुनिया वाले जो खेल, खेल रहे हैं, उससे तुम्हारा वजूद कम होने लगा या ये कहूं कि मिटने लगा है।

 

? – दुख तो इसी बात का है। मेरी एक बूंद पाने को तड़पते हैं और फिर उसे ही नष्ट करते हैं।

 

? – देखो पानी रानी, तुम बुरा मत मानना लेकिन मैं इसलिए जलाता हूं के उन्हें तुम्हारा एहसास हो। आग – पानी साथ नही रह सकते लेकिन जुदा भी तो नहीं हैं।

 

? – अति उत्तम ! हम जुदा नहीं है। ये सत्य वचन कहा।

 

? – हां, देखो न। अगर दुनिया में सिर्फ मैं रहूं। तो  सब नष्ट हो जाएगा।

 

? – हां अगर सिर्फ मैं रहूं तो भी सब नष्ट हो जाएगा।

 

? – दिक्कत तो ये है की इन मानव को कौन समझाए, पेड़ लगाओ पर्यावरण बचाओ।

 

? – मेरा तो सिर्फ इतना कहना है। हमें छेड़ – छाड़ मत करो। हम जैसे हैं हमें रहने दो।

 

? – लेकिन इन बुद्धिजीवी को इतनी सी बात बुद्धि में नही आती।

 

? – मेरा अस्तित्व हर स्थान पे हिला दिया,गंगा जल से सागर – महासागर तक।

 

? – मेरी जरा सी तपिश सह नहीं पाते पर बारूद पे बारूद बनाते।

 

? – हम इतना तो कह ही सकते हैं।

 

बिन नीर तुम जी न पाओगे।

 

अंतिम सांस तक मुझे ही आवाज लगाओगे।

 

? – बिन अग्नि के श्रोत तेरा हाल बेहाल हो जाएगा।

 

ऐसी होगी कमी के तू खड़ा भी न हो पाएगा।

 

? – जो समझे उसे इशारा काफ़ी है।

 

वरना हमें एक – दूजे का सहारा काफी है।

 

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