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दीक्षांत उपन्यास में चित्रित शैक्षणिक भ्रष्टाचार | ऑनलाइन बुलेटिन

©दीपाली मिरेकर

परिचय- विजयपुरा, कर्नाटक


 

धुनिक युग प्रगतिशील पथ पर अग्रसर है। भूमंडलीकरण के इस दौर में भारतीय सामाजिक व्यवस्था पर पाश्चात्य संस्कृति का गहरा प्रभाव देखने को मिलता है। स्वार्थ, अधिकार दाह, अहम आदि मनोविकारी भावनाओं के कारण सामाजिक व्यवस्था में अराजकता फैलती हैं।

 

भारतीय संस्कृति में शिक्षा क्षेत्र पुण्य का स्थल है। जहां व्यक्ति के व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास होता है। इस दिशा में भ्रष्टाचार ने अपने जड़े फैलाने का सफ़ल प्रयास किया है।

 

हिंदी साहित्य के समकालीन महिला साहित्यकारो में सूर्यबाला का नाम भी विशेष रहा है। जिन्होंने पाठकों के समकक्ष समाज में व्याप्त यथार्थ को उजागर किया है। दीक्षांत उपन्यास शिक्षा क्षेत्र में फैले अधर्म, अन्याय, भ्रष्टाचार, अनीति, असंस्कृति आदि विषयों को लेकर आगे बढ़ता है।

 

विद्याभूषण नामक अध्यापक इस उपन्यास का प्रमुख पात्र हैं। जिसको केंद्र में रखते हुए सूर्यबाला ने अनगिनत कर्मनिष्ठ अध्यापकगणों का जिवन संघर्ष चित्रित किया है। कॉलेज के प्रशासनीय व्यवस्था द्वारा विद्याभूषण को विभिन्न रूपों में प्रताड़ित किया जाता हैं।

 

धर्म कर्म निष्ठ और प्रतिभावान विद्याभूषण इस अमानवीय व्यवस्था में फसकर अपनी जान गवा बैठता है। आदर्शवान शिक्षक का अन्याय परक अंत विषादनीय हैं।

 

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