गरीबी | ऑनलाइन बुलेटिन
©मजीदबेग मुगल “शहज़ाद”
परिचय- वर्धा, महाराष्ट्र
परदेश गये साजन सजनी का हाल न पूछा ।
रहती थी सजके क्यों बिखरे बाल न पूछो।।
सूखी रोटी भी साथ में मेवे से कम न थी ।
अलेदा कैसे गुजरती रात सवाल न पूछो ।।
विरह की मारी दर्द ना जाने कोई पिया ।
ज़िन्दगी में आया ये कैसा भूचाल न पूछो ।।
फोन का इन्तेजार रहता कब आयेंगा ।
लाईन इन्टरनेट नहीं रहता कमाल न पूछो।।
मालिक किसी सुहागन को ये दिन ना दिखाए।
उमर जलती अब जैसे कोई मशाल न पूछो ।।
भूख प्यास से बड़ी उनकी आने की आस ।
साजन आजाये खुशियों की चौपाल न पूछो।।
‘शहज़ाद’ गरीबी क्या कैसे रंग दिखाये ये ।
अच्छा आदमी भी बन जाता हमाल न पूछो।।
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