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ब्रह्मास्त्र | ऑनलाइन बुलेटिन

©संतोष यादव

परिचय- मुंगेली, छत्तीसगढ़.


 

 

हे! मानव तुम ज्ञान का कर संधान,

 

ज्ञान ही है, विधि का विधान।

 

 

मन को अपने बाण बना दो,

 

शरीर को बना दो तर्कश।

 

 

सेवा को तुम लक्ष्य बनाकर,

 

परहित को तुम धर्म बनाकर।

 

 

ज्ञान को तू साधन समझेगा,

 

अपने लक्ष्य से तू भटकेगा।

 

 

यदि ज्ञान को साध्य तुम समझो,

 

गुरु को तुम भगवान ही समझो।

 

 

ज्ञान, गुरु और भगवान में समता,

 

श्रद्धा, समर्पण और भक्ति में है रमता।

 

 

सेवा भावना जब मन में होगा,

 

तब कर पाएगा जग कल्याण ।

 

 

गुरु देगा तुमको विद्या का वरदान,

 

जो सभी अस्त्रों – शस्त्रों से है महान्।

 

 

अचूक है लक्ष्य इसका ,

 

चाहे आ जाए कोई विभीषिका।

 

 

कभी न पग डगमग होने देगा,

 

पार्थ हर लक्ष्य को तू भेद कर देगा।

 

 

ज्ञान गुरु है, गुरु ही ज्ञान है,

 

ज्ञान ही माता, ज्ञान पिता है।

 

 

ज्ञान ही सत्य है , ज्ञान ही शिव है,

 

ज्ञान ही है सभी से सुंदर।

 

 

तेरे अंदर , मेरे अंदर,

 

ज्ञान का है, चारों ओर समंदर।

 

 

उठ खड़ा हो अब निराशा को तोड़,

 

अपने मन में ज्ञान का ब्रह्मास्त्र छोड़।

 

 

अनंत है ज्ञान की मारक क्षमता,

 

ज्ञान बन जाएगा अविवेकहंता ।

 

 

यह ब्रह्मास्त्र विनाश नहीं , सृजन देगा,

 

आशा, आत्मविश्वास , नवजीवन देगा।

 

 

चारों तरफ होगी खुशहाली ,

 

जीवन पथ होगी हरियाली ।

 

 

हर एक ताले की है कुंजी,

 

ज्ञान ही है , सबसे अमूल्य पूंजी।

 

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