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तेरे ही भाग्य में अंधेरा | ऑनलाइन बुलेटिन डॉट इन

©गायकवाड विलास

परिचय- मिलिंद महाविद्यालय, लातूर, महाराष्ट्र


 

आंचल में अमृत जैसा दूध,

और नयनों से तेरे बहता पानी।

डरी डरी सी तेरी निगाहें प्यारी,

कब बदलेगी ये तुम्हारी कहानी।

 

बीत गई वो कितनी सदियां,

आज भी जलती है तेरी काया।

कौन समझा है तुम्हें इस जहां में,

संग तेरे हरपल है गमों का साया।

 

पुरातन हो या हो विज्ञान का युग,

यहां बदली नहीं इन्सानों की नीतियां।

आज भी हर नज़र है तुम्हें देखती,

यही है इस बदले युग की नई क्रांति।

 

घर आंगन में तुम ही हो बहार,

तुम्हारे बिना अधूरा है ये संसार।

जो करें मान सम्मान तुम्हारा ,

वहीं पर है यहां खुशियां अपार।

 

हर रुप है तेरा ममता भरा ,

तुम ही हो गंगा सी निर्मल धारा।

सभी रुप तेरे इस जगत में है अनमोल,

फिर भी तेरे ही भाग्य में ये कैसा अंधेरा – – – ये कैसा अंधेरा ?

 

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