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त्याग-समर्पण की मूरत | ऑनलाइन बुलेटिन

©अनिता चन्द्राकर, व्याख्याता

परिचय– दुर्ग, छत्तीसगढ़


 

 

त्याग-समर्पण की मूरत नारी,

सहनशीलता अपार।

 

घर परिवार ही उनकी दुनिया,

लुटाती अपना प्यार।

 

कम नहीं किसी क्षेत्र में,

बस अवसर की है कमी।

 

प्रतिभा से है लबरेज़ वो,

पर नहीं भूलती अपनी ज़मीं।

 

कमज़ोर नहीं है नारी,

होती सम्पूर्ण सृष्टि का आधार।

 

दो कुलों के बीच की पुल,

उनसे व्यवस्थित घर परिवार।

 

माँ, बहन, बेटी, भार्या,

हर रिश्ता वह दिल से निभाती।

 

दुष्टों का संहार करने,

माँ दुर्गा, रणचंडी भी बन जाती।

 

कलकल नदियाँ सी शीतल,

ला देती जीवन में बहार।

 

उनके प्यार की खाद पाकर,

फलता फूलता ये संसार।

 

ममता का सागर बनकर,

सबका वो जीवन सँवारती।

 

घर परिवार में मिल जाती ऐसे,

ख़ुद को ही भूल जाती।

 

स्नेह, सम्मान की भूखी वो,

उनको भी दो सम अधिकार।

 

परंपराओं के नाम पर बंधकर नारी,

कब तक सहेगी अत्याचार।


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