प्यार का दिन | ऑनलाइन बुलेटिन
©अशोक कुमार यादव
परिचय- मुंगेली, छत्तीसगढ़
एक वर्ष के बाद आया है प्यार का दिन।
मन में उमंग है तरंग है चारों ओर रंगीन।।
आज खुश हूं बहुत प्रेमिका से मिलने।
इंतजार कर रहा हूं गुलाब का खिलने।।
मन ही मन गुनगुना रहा हूं प्यार का धुन।
व्याकुल हृदय को आज मिलेगा सुकून।।
पहली नज़र में देख मुझे प्यार हुआ था।
सुकुमार हाथों से उसने मुझे छुआ था।।
उसके बदन की खुशबू से मोहित हो गया।
मेरा छोटा सा दिल ना जाने कहां खो गया।।
उसे बार-बार देखने को मन मचल रहा है।
तू चल उसके पास है भावना कह रहा है।।
रोज देखता हूं दर्पण में चेहरा को बार-बार।
कंघी से बाल संवार कर हो जाता हूं तैयार।।
नए-नए कपड़ों का मेरे घर में मेला लगा है।
इत्र से महक रहा घर आंगन में ठेला लगा है।।
प्रेम धुन में रहता हूं सुनता नहीं किसी की बात।
काम को छोड़ चला जाता हूं करने मुलाकात।।
चौक-चौराहे गली में उनको ढूंढता रहता नज़र।
ना जाने मुझे क्या हो गया यह कैसा है असर।।
दूर से देखते रहता हूं उसके चांद से मुखड़े को।
दौड़ कर जा लगा लूं गले मेरे दिल के टुकड़े को।।
सुनते रहता हूं मैं उनके मधुर कोयल बोली को।
दोस्तों को बताता हूं मैं उनके हंसी ठिठोली को।।
वो भी देखती मुझे तिरछी नज़र से मुस्कुरा कर।
पास बुलाती मिलने के लिए धीरे से पुचकार कर।।
सारा वातावरण संगीत मय रंग-बिरंगे हो जाता।
गीत गुंजने लगता धरा में मैं प्यार में खो जाता।।
जागते खड़े होकर भविष्य की सपने देखता मैं।
दुल्हन बन जब आती घर में खूब चहकता मैं।।
निशीथ शहद रात्रि को हम दोनों का मिलन होता।
भर लेता बाहों में उसको चुपके से कानों में कहता।।
तुम्हारे बिना कितना उदास,बेचैन,मायूस,अधूरा था।
दिल का गुलशन पतझड़ की ओर बढ़ने लगा था।।
यदि मिलती नहीं तुम मुझे सपनों की रानी बनकर।
जीते जी मर जाता प्यार में पागल, बैरागी बनकर।।
सपना टूटा नींद खुली असल में उनकी दर्शन हुआ।
लाल गुलाब लिए रास्ते में खड़ी थी मन प्रसन्न हुआ।।
मैं आपसे प्यार करती हूं मेरे पास में आकर बोली।
दिया मैंने गुलाब फूल हम दोनों बन गए हमजोली।।