आंचल मेरा तुम …
©प्रा.गायकवाड विलास
परिचय- मिलिंद महाविद्यालय, लातूर, महाराष्ट्र
ये आखरी वक्त है,इस गुलशन को कभी उजड़ने न देना,
कह रही है ये मां धरती,आंचल मेरा तुम बिखरने न देना।
तिरंगे की छांव में ये मेरा आंचल देखो कैसे खुशहाल है,
उसी आंचल में लिए तुम्हें,ये अस्तित्व मेरा आज बेमिसाल है।
कुछ नीतीहीन निगाहें,नोचना चाहती है ये आंचल मेरा,
करो रक्षा तुम उस आंचल की,जिस आंचल में भविष्य है तुम्हारा।
ये तिरंगा मेरा सरताज है,ये तिरंगा ही मेरा अनुपम श्रृंगार है,
मांग मेरी तुम उजड़ने न देना,आज यही इस धरती मां की पुकार है।
मां जननी हूं मैं तुम सभी की,मेरे आंचल में कोई भेदभाव नहीं है,
जाति धर्मों का खेल तुमने खेला,मेरे कोख में कोई ऊंच-नीच नहीं है।
याद करो वो नारा तुम”करो या मरो”वो मंज़र कैसे तुम भूल सकते है,
उन्हीं शहिदों की औलादें होकर,आज तुम इतने चुप कैसे बैठ सकते है।
ये आखरी वक्त है,इस गुलशन को कभी उजड़ने न देना,
संविधान ही हमारा रक्षक,उसी को कभी खत्म न होने देना।
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