कुछ तो लोग ऐसे है यहां….
©प्रा.गायकवाड विलास
परिचय- मिलिंद महाविद्यालय, लातूर, महाराष्ट्र
कुछ तो लोग ऐसे है यहां, जो हरा-भरा गुलशन चाहते है,
उन शहिदों की यादों में, आज भी वो हरपल अश्क बहाते है।
भूलें नहीं वो गुलामी का मंजर, जिसने हमें यहां तडपाया है,
गई कितनी निरपराध जाने, पल-पल उस गुलामी ने हमें रूलाया है।
उजड़ी कितनी मां ओ की गोद, इस मिट्टी ने यहां देखा है,
पढ़कर वो इतिहास के पन्ने भी, जमाने ने यहां क्या सिखा है?
जब लहूलुहान हुई ये मिट्टी, तभी ये तिरंगा यहां पर लहरा है,
कभी देखो उस मिट्टी को, रंग उसमें आज़ादी का गहरा है।
जिओ तुम अपनी जिंदगी, तुमने क्या उस आजादी में खोया है,
नाम के इन्सान तुम, तुमने तो अपना ज़मीर भी यहां बेच खाया है।
ज्ञान के दिये तो जल गए मगर, मन तुम्हारा कब यहां रोशन हुआ है,
दिन-ब-दिन बढ रही है नफरतें, उसी में ये सारा संसार जल रहा है।
हंसता खिलता हुआ ये गुलशन, देखो आज कितना सहमा सहमा सा है,
अब तो बन जाओ तुम सच्चे इन्सान, सदियों बाद ये गुलशन यहां खिला है।
कुछ तो लोग ऐसे है यहां, जो हरा-भरा गुलशन चाहते है,
उखाड़ फेंको ऐसी नीतियों को, जो इस गुलशन को ही उजाड़ना चाहते है – – –
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