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दुश्मन भी दोस्त बनकर छलता है | ऑनलाइन बुलेटिन

©श्याम निर्मोही

परिचय – बीकानेर, राजस्थान.


 

 

कौन किसे कब क्यों खलता है

वक्त आने पर सब पता चलता है

 

बुत की सलवटों से बयां होता है

कड़ी धूप में भी कोई यूं पलता है

 

खोटे सिक्के खटक जाते राह में

बाज़ार में खरा सिक्का चलता है

 

जो ताल से ताल ना मिला पाया

तन्हाई में फिर वो हाथ मलता है

 

ये इश्क की इंतेहा है या जुनून की

दीपक की लौ पर पतंगा जलता है

 

अपनी अना में मत हो मगरूर तू

शाम होते होते सूरज भी ढलता है

 

आगे निकलने की होड़ में निर्मोही

दुश्मन भी दोस्त बनकर छलता है

 

 

*मायने

अना=स्व, अहंकार,अभिमान, गर्व, आत्म प्रदर्शन ,

मग़रूर = (विशेषण) घमंडी, अभिमानी

 

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