कुल्हड़ की चाय | Newsforum
©डॉ. संतराम आर्य, वरिष्ठ साहित्यकार, नई दिल्ली
परिचय : जन्म 14 फरवरी, 1938, रोहतक।
…उन दिनों बस्ती से दूर
गांव के बाहर
मजदूरी ठिकानों के पास
शीशे के गिलास और
मिट्टी के कुल्हड़ में
मिलती थी चाय
गिलास को हाथ
लगने से पहले
मेरी पूछ ली थी जात
जुबां पर जात मिली छोटी
तो मिट्टी का कुल्हड़ ही
मेरे हिस्से में आई
उसमें पड़ी चाय मिट्टी की
सोंधी सोंधी खुशबू के साथ
जब होठों से लगी तो
खयाल आया
शीशे के गिलास की
खुशबू अच्छी होगी और
मैं खोजने लगा था अपने में
बड़ी जात के आदमी को …