टेलीफोन पे बात हो तुमसे उसका मैं इंतज़ार करता था | ऑनलाइन बुलेटिन डॉट इन

©कलमकार
दिन मेरा कटता नहीं था जब तुम्हारी आवाज़ ना सुनु!
देरी से मुझे तुम कॉल करो मैं नाराज़ हो जाया करता था!
प्यार से तुम मुझे बुलाती थी जब गुस्सा ख़तम हो जाता!
टेलीफोन पे बात हो तुमसे उसका मैं इंतज़ार करता था!
थका -हरा आता मैं जब काम से अपने सबसे पहले तुम्हारी आवाज़ सुनने की ख्वाइस करता!
आवाज़ सुनने के लिए मैं बेचैन हो जाया करता था!
दिन मेरा बहुत अच्छा जाता था मेरा उस दिन!टेलीफोन पे बात हो तुमसे उसका मैं इंतज़ार करता था!
इंतजार होता नहीं था मुझसे वक़्त जैसे धीरे चल रहा हो ऐसा लगता था!
टेलीफोन ना आने पे ठीक हो तुम दुआ ख़ुदा से किया करता था!
आता कॉल तुम्हारा जब तब शुक्रिया ख़ुदा को करता!
टेलीफोन पे बात हो तुमसे उसका मैं इंतज़ार करता था!
नींद नहीं आती जब तक तुमसे बात ना करलू मैं!
तुमसे बात करता प्यार भरे नाम से बुलाता तुम्हे वक़्त को रोक लू ये ख़ुदा से माँगा करता था!
चली जाती तुम अगर थोड़ी देर के लिए उदास में हो जाता!
और टेलीफोन पे बात हो तुमसे उसका मैं इंतज़ार करता था!
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