यह जाना है | ऑनलाइन बुलेटिन
©पूनम सुलाने-सिंगल
परिचय– जालना, महाराष्ट्र
सरहदें नहीं होती आसमान में
उड़ते पंछियों ने यह जाना है
नहीं रोक सकती लकीरे रोशनी को
उगती किरणों ने यह जाना है
नहीं होता कोई मजहब खुशबू का
खिलती कलियों ने यह जाना है
नहीं होती कोई जाति प्यास की
बहती नदियों ने यह जाना है
दृढ़ता को कोई नहीं हिला सकता
अचल पर्वतों ने यह जाना है
नहीं होता है अंत विशाल ह्रदय का
गहरे सागर ने यह जाना है
सांसों से बढ़कर नहीं कोई संगीत
चलती हवाओं ने यह जाना है
टकराकर चट्टानों से गूंजता है गीत
बहते हुए झरनों ने यह जाना है
जीवन से बढ़कर नहीं कोई दौलत
क्या कभी इंसानों ने यह जाना है..?
दौड़ रहा है हर कोई मंजिल के खातिर
मगर कहाँ है मंजिल यह किसने जाना है..?