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युग की जानकारी : ई सन् 1820 – गुरु घासीदास का सतनाम आंदोलन, ई सन् 1920- डॉ भीमराव अंबेडकर के पत्रकारिता | newsforum

आज से 200 वर्ष पहले गुरु घासीदास जी ने भारत में व्याप्त जातिवाद, भेदभाव, ऊंच-नीच, छुआछूत के विरोध में समानता पर आधारित (महान सतनाम आंदोलन) की शुरुआत की थी। उस युग में किसी शोषित, पीड़ित, वंचित समाज को पढ़ने-लिखने की आजादी नहीं थी, उस विकट, विषम परिस्थितियों में गुरु घासीदास जी ने भारत में अपनी नींव जमा चुके छुआछूत से निजात दिलाने समस्त मानव समाज को एक करने अपनी विचारधारा को जन-जन तक पहुंचाने के लिए जमीनीस्तर पर जन आंदोलन चलाया था और लोगों को एक महामंत्र दिया था (मानव-मानव; एक-समान) गुरु घासीदास जी के महान् क्रान्तिकारी परिवर्तनकारी सतनाम आंदोलन के दौरान जातिवादी संकीर्ण मानसिकता को बढ़ाने वालों के बीच हाहाकार मच गया था और लोग जातिवाद, ऊंच-नीच, भेदभाव, छुआछूत की मजबूत जंजीरों को तोडकर मानवता और इंसानियत के राह पर चलने लगे थे।

 

गुरु घासीदास जी प्रकृति के गोद में चले जाने के बाद जातिवाद के पोषकों ने एक बार पुनः भारत भूमि में कुटिल नीति अपनाई और फिर से जातिवाद, छुआछूत, भेदभाव, ऊंच-नीच को बढ़ चढ़कर लागू करने में सक्षम हो गए।

 

1820 के सतनाम आंदोलन के 100 वर्ष बाद डॉ. भीमराव अम्बेडकर जी ने 31 जनवरी ई सन् 1920 को अपने अखबार (मूकनायक) के पहले संस्करण के लिए जो लेख लिखा था उसका पहला वाक्य” आज के मीडिया को कैसा देखा जाए ? यदि इस सवाल का जवाब ढूंढना है तो (मूकनायक के माध्यम से हमें समझना आसान होगा कि मुंबई जैसे इलाक़े में निकलने वाले बहुत से समाचार पत्रों को देखकर यही लगता है कि’ उनके बहुत से पन्ने किसी जाति विशेष के हितों को देखने वाले हैं, उन्हें अन्य जाति के हितों की परवाह ही नहीं है बल्कि वे दूसरी जाति के लिए अहितकर भी नजर आते हैं। ऐसे समाचार पत्रों को हमारा यही इशारा है कि (कोई भी जाति यदि अवनत होती है तो उसका असर दूसरी जातियों पर भी होता है, समाज एक नाव की तरह होता है अगर नाव डूबती है तो उसमें सवार सभी यात्री डूब सकते हैं।

 

आज से 100 वर्ष पूर्व जो बाते डॉ. अंबेडकर ने लिखी थी वह आज के मीडिया में दिखाई देता है। अपनी बातों को जन-जन तक पहुंचाने के लिए डॉ. भीमराव अंबेडकर जी ने (मूकनायक) नामक पत्रिका का प्रकाशन किया था। 1820 में अपनी बातों, अपने विचारों को जन-जन तक पहुंचाने के गुरु घासीदास जी ने सतनाम आंदोलन चलाया था।

 

गुरु घासीदास जी के ऐतिहासिक सतनाम आंदोलन के 200 वर्ष के बाद। डॉ. भीमराव अम्बेडकर जी के (मूकनायक) पत्रिका के 100 वर्ष बाद भी मीडिया में शोषित पीड़ित वंचित समाज के हक अधिकार को प्रमुखता से प्रकाशित नहीं किया जाता।

 

©हरीश पांडल, बिलासपुर, छत्तीसगढ़    


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