ये जो ज़िंदगी की किताब है…
©भरत मल्होत्रा
ये जो ज़िंदगी की किताब है
ये किताब भी क्या किताब है
कहीं सदियों का भी ज़िकर नहीं
कहीं लम्हों तक का हिसाब है
ये जो ज़िंदगी की किताब है
ये किताब भी क्या किताब है
कहीं इश्क तो कहीं दिल्लगी
कहीं जाम और कहीं तिश्नगी
है हज़ार कमियां लिए हुए
बेहद मगर लाजवाब है
ये जो ज़िंदगी की किताब है
ये किताब भी क्या किताब है
किसी को खुशी की तलाश है
कोई बेवजह ही उदास है
कहीं कहकहों का है शोरगुल
कहीं आँसुओं का सैलाब है
ये जो ज़िंदगी की किताब है
ये किताब भी क्या किताब है
नहीं मिला जो उसका गम नहीं
जो मिला है वो भी तो कम नहीं
नहीं इससे कोई गिला मुझे
ना ही अच्छी ना ही खराब है
ये जो ज़िंदगी की किताब है
ये किताब भी क्या किताब है
कभी दो घड़ी मेरी बात सुन
कभी देख मेरी उधेड़बुन
मुश्किल है लेकिन हसीन है
काँटों में खिलता गुलाब है
ये जो ज़िंदगी की किताब है
ये किताब भी क्या किताब है
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