.

कोशिशें | ऑनलाइन बुलेटिन

©मजीदबेग मुगल “शहज़ाद”

परिचय- वर्धा, महाराष्ट्र


 

 गज़ल

 

सारी कोशिश तो भुलाने की मुझ को।

अच्छी तरकीब रूलाने की मुझ को।।

 

रात रात भर जाग जाग कर काटता हुं।

बहुत हिकमते हुई सुलाने की मुझ को ।।

 

अब कुछ भी पसंद आता नहीं जमाने ।

फुजुल रही चिजें खिलाने की मुझ को।।

 

दिल बहलाने को कब कहां नहीं गये ।

हकीकत रस्म लगी झुलाने की मुझ को ।।

 

उजडे बाग को सर सब्ज करने चले ।

ठान ली थी उसने सताने की मुझ को ।।

 

हादसा ज़िन्दगी में यही गलत हुआ।

वो चाल चले थे हंसाने की मुझ को ।।

 

नज़ारों की महेक खुशबु की बात ।

सब कोशिशें हुई बचाने की मुझको ।।

 

‘शहज़ाद ‘ ना ये दिन दिखाये किसी को ।

खूब की गई बात हटाने की मुझको ।।

 

ये भी पढ़ें :

किंत्सुगी ~ वबी-सबी ~ अनिश्चित, अस्थायी, अपूर्ण… | ऑनलाइन बुलेटिन

 


Back to top button