हाँ, मुझको कुछ कहना है haan, mujhako kuchh kahana hai
©गुरुदीन वर्मा, आज़ाद
परिचय– बारां(राजस्थान)
मैं भी तो इंसान हूँ ,
उन्हीं की तरहां,
जो रहते हैं इस जमीं पर,
और जुटाते हैं कुछ साधन,
खुद को सुखी बनाने के लिए,
अपना नाम कमाने के लिए।
हाँ ,मैं कुछ वैसा नहीं हूँ,
जो जीतने को दुनिया की दौड़,
गिराते हैं पैर मारकर दूसरे को,
जिनका नहीं है कोई कसूर,
या खरीद लेते हैं दौलत से,
इंसान और दुनिया को सच में।
हाँ, मैं ऐसा इंसान हूँ ,
जो चाहता नहीं है कभी,
किसी की बद दुहाएँ,
कामयाब बनने के लिए,
किसी का मकान गिराना,
अपना मकान बनाने के लिए।
डरता हूँ मैं रस्मों-रिवाज से,
करता हूँ शर्म भगवान की,
आ जाते ऑंसू आँखों में,
किसी का रुदन सुनकर,
आ जाती है दया मुझको,
किसी की बर्बादी देखकर।
बेच नहीं पा रहा हूँ अपना धर्म,
बना नहीं पा रहा हूँ अपना महल,
बहा नहीं पा रहा हूँ किसी का खून,
जमीं पर अपना खौफ जमाने के लिए,
बन नहीं पा रहा हूँ मैं कातिल,
क्योंकि मैं डरता हूँ सच में,
इंसानियत और पाप से,
हाँ, मुझको कुछ कहना है।
I am also human
like them,
Those who live on this land,
and gather some resources,
to make myself happy,
To earn your name.
yeah i’m not like that
The race of the world to win,
knocks others down by hitting their feet,
Those who have no fault,
Or buy it with money,
man and the world in truth.
Yes, I am such a person,
who never wants
pity someone,
to be successful,
demolish someone’s house
to build your house.
I am afraid of rituals,
Shame on God
Tears come in my eyes,
Hearing someone’s cry,
Mercy comes to me,
Seeing someone’s loss
I am not able to sell my religion,
I am not able to build my own palace,
Can’t shed someone’s blood
To put your fear on the ground,
I am not able to become a murderer,
because I’m really afraid,
from humanity and sin,
Yes, I have something to say.