झन कर हंसा घमंड | Onlinebulletin
©पुष्पराज देवहरे भारतवासी, रायपुर, छत्तीसगढ़
परिचय- कविता, कहानी लेखन में रुचि, विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशन, शिक्षा- स्नातक.
झन कर हंसा घमंड ये तन के
उड़ जाही एक दिन चिरई बन के ||
पैसा कौड़ी काम नई आवय
रख काया ल बने जतन के ||
भाव भजन कुछु नई जानेच
चलेच तै ह अपने मन के ||
पर नारी बर नियत गड़ाये
घर के पत्नी रखे भरम के ||
चारी चुगली में जिनगी बिताये
झगरा करे तैं किसम किसम के ||
खुरसी म बइठे कंगाल बनाये
जाल बिछाए जाति धरम के ||
पढ़े के उमर म जिनगी बिगाड़े
परगे चक्कर दारु अउ रम के ||
चोरी लबारी म जिनगी पहाये
फुट जाही एक दिन मरकी करम के ||