मज़लूम | ऑनलाइन बुलेटिन डॉट इन
©भरत मल्होत्रा
बुजुर्गों की तेरे हाथों से ना तौहीन हो जाए
तेरी बातों से कोई दोस्त ना गमगीन हो जाए
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मिल जाए अगर इसमें किसी मज़लूम का आँसू
घड़ी में दरिया मीठे पानी का नमकीन हो जाए
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उदासी में किसी की घोल दें थोड़ी सी खुशियां तो
दिन अपना भी आज का ये बेहतरीन हो जाए
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कत्ल मेरा मेरे कातिल तू एहतियात से करना
कहीं ना खून से लथपथ तेरी आस्तीन हो जाए
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कड़वा है ज़ायके में बहुत है फायदेमंद लेकिन
सच कहने का, सुनने का जो तू शौकीन हो जाए
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बचा सकती नहीं ताकत कोई फिर उस हुकूमत को
जहां हक माँगना भी जुर्म इक संगीन हो जाए
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