लुटता मेरा देश | ऑनलाइन बुलेटिन
©देवप्रसाद पात्रे
परिचय– मुंगेली, छत्तीसगढ़
जाति-धर्म, मजहब के नाम पर लुटता मेरा देश
गांव-शहर, गली-मोहल्ले, और हर एक प्रदेश,,
हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई
आपस में ऐसे लड़ रहे हैं।
एक दूसरे के हैं खून के प्यासे
देखो ऐसे मर रहे हैं।।
कोई जीने की आस में है,
तो कोई दंगे की ताक में है।
कोई मिल के मरहम लगा रहा,
कोई मौके के फिराक में है।।
जात-पात, ऊंच-नीच का छाया है क्लेश,,
गांव-शहर, गली-मोहल्ले, और हर एक प्रदेश,,
देश के अनपढ़, गरीब-मजदूर
कितने बेबस और लाचार हैं।
इन्हें तो बस रोटी की चिंता,
अमन सदियों से बीमार हैं।।
भाग्य और आस्था के नाम पर
कोई तन लुटेरा लूट रहा दे रहा है।
स्वर्ग नरक का भय दिखा के
कोई रुपये और धन लूट रहा है।।
देखो आडम्बर अपनी बाहों में कैसे कस रहा है।।
बड़े प्यार से इंसान इंसान को कैसे डस रहा है।।
बहरूपिया घूम रहा बदल के अपना भेष,,
गांव-शहर, गली-मोहल्ले, और हर एक प्रदेश,,
खुद से अंजान हाथों में यहां
धर्म का झंडा दिखता है,
धर्म और मजहब के नाम का
हाथ मे डंडा दिखता है।।
एक आवाज में हैं तैयार
खून की नदियां बहाने को।।
हाँ हरदम हैं तैयार यहां
एक दूसरे को हराने को,,
ठान लिए हैं दुश्मन ऐसे बदलेंगे परिवेश,,
गांव-शहर, गली-मोहल्ले, और हर एक प्रदेश,,
न तेरा अजान बड़ा है, न तेरा भगवान बड़ा है।
न तेरा बाइबिल, गीता, न तेरा कुरान बड़ा है।।
न तेरे रुपये पैसे, न तेरा धर्म बड़ा है।
न हीरे जवाहरात, न तेरा कर्म बड़ा है।।
सर्वस्व तेरा मातृभूमि है, सबसे आगे देश बड़ा है।।
न आपस बैर हो, हर सुबह सुकून का सैर हो।।
हर तरफ खुशहाली हो, रहे न कोई क्लेश,
गांव -शहर, गली मोहल्ले और हर एक प्रदेश।