.

मुफलिसी | ऑनलाइन बुलेटिन डॉट इन

©भरत मल्होत्रा

परिचय- मुंबई, महाराष्ट्र


 

शायद अभी भी मुझको कोई तुमसे आस है

इसके लिए तो दिल मेरा इतना उदास है

~~~~~~~~

 

संग गिरे तुझ पे और ज़ख्म हो मुझे

तू अब भी इस कदर मेरे दिल के पास है

~~~~~~~~

 

तेरे बगैर तख्त ओ ताज भी नहीं कबूल

तू साथ है मेरे तो मुफलिसी भी रास है

~~~~~~~~

 

साकी हटा ले जाम मेरे सामने से तू

मय से ना बुझेगी ये आँखों की प्यास है

~~~~~~~~

 

ज़ख्म हो रुसवाई का या चाहे कर्ब-ए-ज़ात

अपने लिए हर चोट मुहब्बत की खास है

~~~~~~~~

 

मेरी बरहनगी का उड़ाते हो क्यों मज़ाक,

हर शख्स तेरी बज़्म में तो बेलिबास है

~~~~~~~~

 

मंजिल खुद आ गई है पता पूछते हुए

तू लग रहा है जैसे मेरे आस पास है

~~~~~~~~

 

ये भी पढ़ें :

बाबा का मूकक्रदंन | ऑनलाइन बुलेटिन डॉट इन


Back to top button