ज़िन्दगी के बज़ारों पर | ऑनलाइन बुलेटिन
©मजीदबेग मुगल “शहज़ाद”
परिचय- वर्धा, महाराष्ट्र
कितना सितम जुल्म ढाओगे बे सवारों पर ।
वो दर्द क्या जाने जो आशिक नगारों पर ।।
बुझे चरागों से रौशनी का मांगना गलत ।
दिन में नज़र डाले आसमानी नज़रों पर ।।
गमो से भरा उनके ज़िन्दगी का वो दामन ।
एक दो पर नही सितम हुआ है हज़ारों पर।।
दौलत हुकूमत दम खम पैसा ताकत के बल पर।
कब बन्धन आया ज़िन्दगी के बज़ारों पर ।।
जुबा बंद आवाज दबाई गई है जुल्म से।
किसकी इज्जत तो गर्दन कटी इशारों पर।।
अपनी ज़िद किसी की जान लेले एक पल में।
कानून की धज्जी उड़ी रिश्वती सहारों पर।।
‘शहज़ाद ‘इमान जब बिके चंद कवड़ी दाम पे।
कौन किस पर यकीन रखें कपटी कसारों पर ।।
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