गवाही | ऑनलाइन बुलेटिन डॉट इन

©भरत मल्होत्रा
हक में बेकसूरों के गवाही कौन पढ़ता है
यहां चेहरों पे लिखी बेगुनाही कौन पढ़ता है
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आज अखबार बिकते हैं चंद तस्वीरों की खातिर
ये कागज़ पर जो फैली है स्याही कौन पढ़ता है
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बिना दस्तक चले आते हैं दिल में अजनबी अक्सर
लिखा भी है आने की मनाही कौन पढ़ता है
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उलझा है यहाँ हर कोई अपनी-अपनी फिक्रों में
हालात-ए-मुल्क पर मेरी आगाही कौन पढ़ता है
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अब अपनी सहूलत के लिए फतवे निकलते हैं
तेरा अब हुक्मनामा या इलाही कौन पढ़ता है
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नाफरमानियां शामिल हैं फितरत में यहां सबकी
होगा फरमान तेरा शहंशाही कौन पढ़ता है
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शहर के लोग हैं मसरूफ सब पैसा कमाने में
दुआ-ओ-नीमशब-ओ-सुबहगाही कौन पढ़ता है
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