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Cobbler- जूते, सपने और संघर्ष: एक बालक के बचपन की अनसुनी कहानी…

Cobbler-

Cobbler- बचपन का हर क्षण किसी न किसी अनुभव से जुड़ा होता है। इन्हीं अनुभवों में छिपे होते हैं संघर्ष, सीख और जीवन की सच्चाई। यह कहानी है 90 के दशक के एक बच्चे की, जो अपने परिवार, समाज और आर्थिक संघर्षों के बीच अपने छोटे-छोटे सपनों के साथ बड़ा हुआ।


सपनों के पंख और संघर्ष की उड़ान

Cobbler- 1992-93 का वह दौर, जब मध्यप्रदेश (अब छत्तीसगढ़) के एक छोटे-से शहर का एक बड़ा परिवार डॉक्टर बनने के सपने देख रहा था। परिवार के बड़े बेटे को भिलाई के प्रतिष्ठित कोचिंग सेंटर में दाखिला दिलाने के लिए हर मुमकिन कोशिश की जा रही थी। यह वह समय था जब पिता की अस्थिर नौकरी, मंझले भाई की गंभीर बीमारी, और परिवार की आर्थिक स्थिति ने घर को निरंतर संघर्ष का अखाड़ा बना दिया था।


बचपन की मुश्किलें

Cobbler- इस कठिन समय में परिवार के सबसे छोटे सदस्य, सातवीं कक्षा में पढ़ने वाले “सचिन” का जीवन भी इन संघर्षों से अछूता नहीं था। स्कूल जाने के लिए खद्दर का झोला और बड़े भाइयों की विरासत में मिली पुरानी, उपयोगहीन किताबें ही सचिन का सहारा थीं।

उन दिनों स्कूल की यूनिफॉर्म मिल जाती थी, लेकिन जूते खरीदने पड़ते थे। सचिन का बरसाती जूता टूट चुका था। पिता से नए जूते की मांग पर घर में झगड़ा हुआ। महीनों के इंतजार के बाद पिता उसे लेकर रेलवे स्कूल के सामने स्थित एक मोची की दुकान पर पहुंचे।


मोची की दुकान और संघर्ष के निशान

Cobbler- सचिन का दिल तेजी से धड़क रहा था। मोची ने पुराने जूते के बदले एक जोड़ी बड़े साइज के जूते दिखाए। कई बार चक्कर लगाने के बाद आखिरकार एक लाल रंग का जूता मिला। लेकिन, उसकी कीमत थी ₹5। घर जाकर मां से पैसे मांगे, तो उन्होंने केवल आठ आने (₹0.50) ही दिए। मोची ने बिना पूरे पैसे जूता देने से मना कर दिया।

सचिन ने हर संभव मदद मांगी। तब “चंद्रशेंन मामा” ने उसे अपने पुराने, फिटिंग के जूते और जुराबें दीं। यह छोटा-सा उपहार उसके लिए किसी सपने के सच होने जैसा था।


भाई का सपना, परिवार की असलियत

Cobbler- जहां एक ओर सचिन अपने छोटे-छोटे संघर्षों से जूझ रहा था, वहीं बड़े भाई का डॉक्टर बनने का सपना अधूरा रह गया। पीएमटी में असफलता के बाद, परिवार के सपनों पर और भी गहरी चोट लगी। आर्थिक संकट ने घर में तनाव और गृहयुद्ध की स्थिति पैदा कर दी।

इसके बाद, भारती मामाजी के प्रयासों से बड़े भाई को एक सरकारी नौकरी मिली। लेकिन, इसके लिए परिवार ने बड़ी रकम चुकाई। यह नौकरी परिवार के लिए आर्थिक स्थिरता का प्रतीक बनी, लेकिन संघर्षों की कहानियां वहीं खत्म नहीं हुईं।


संघर्षों से मिली सीख

Cobbler- यह कहानी केवल जूतों की नहीं है; यह कहानी है आत्मसम्मान, हिम्मत और संघर्ष की। छोटी-छोटी चीजें, जो किसी के लिए मामूली हो सकती हैं, दूसरों के जीवन में बड़ी भूमिका निभाती हैं।

सचिन के संघर्षों ने उसे जीवन में हर छोटी चीज की अहमियत सिखाई। संघर्ष और सहायता से ही परिवार ने धीरे-धीरे अपना जीवन पटरी पर लाया।


निष्कर्ष: सपनों के लिए संघर्ष जरूरी है

यह कहानी एक याद दिलाती है कि जीवन में मुश्किलें चाहे जितनी भी हों, सपनों और संघर्षों से हार नहीं माननी चाहिए। जो सपने आज अधूरे लगते हैं, वे कल पूरे हो सकते हैं—बस हमें प्रयास जारी रखने होंगे।

“हर संघर्ष हमें मजबूत बनाता है और हर सीख हमारे जीवन को नया अर्थ देती है।”

 


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