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दर्द का धागा | ऑनलाइन बुलेटिन डॉट इन

©बिजल जगड

परिचय- मुंबई, घाटकोपर


 

दर्द के धागा से ता~उम्र गीत बुनता रहा,

लहू का साज़ डसती रात में बजता रहा।

 

घटा शेरों की चारो तरफ दिल खामोश रहा,

प्यासी आंखे आंसू आंसू दरिया करता रहा।

 

मेरे वजूद का बादल आंखों से बरसता रहा,

जज़ीरे बने पलको का समुंदर सिमटता रहा।

 

कोई धागा तुझ से जोड़े मिन्नते करता रहा।

दिल दरिया लहेरे टूटी दायरा बढ़ता रहा।

 

गहरी खामोशी बे -आबाद जज़ीरे ढूंढता रहा,

लहू के दीप जलाए जुगनू जगमग करता रहा,

 

सब्र का जाम उठाके खामोशी से पी आवाज़,

हर एक लफ्ज़ गीत बनके होटों पे खिलता रहा।

 

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