ज़ख्म | ऑनलाइन बुलेटिन डॉट इन

©बिजल जगड
ये ज़ख्म के टाँके है या रफू है,
इन ज़ख़्मों का फ़रोज़ाँ कौन है।
अपने दर्द का दरमाँ कहा मिले?
अंधेरी रातों का दरख़्शाँ कौन है।
न सुनी है ताज़ा रिवायत हमने,
इस गम का निगहबाँ कौन है।
ले आया हूं लब पे हर्फ़-ए-तमन्ना ,
ता उम्र वो दीदा-ए-हैराँ कौन है।
ना मिले दिल-ए-बे-सब्र को करार,
इश्क़ में ग़म-ख़्वार नादाँ कौन है।
* दरख़्शाँ -प्रकाशमान
* दीदा-ए-हैराँ – चकित नेत्र
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