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ज़ख्म | ऑनलाइन बुलेटिन डॉट इन

©बिजल जगड

परिचय- मुंबई, घाटकोपर


 

 

ये ज़ख्म के टाँके है या रफू है,

इन ज़ख़्मों का फ़रोज़ाँ कौन है।

 

अपने दर्द का दरमाँ कहा मिले?

अंधेरी रातों का दरख़्शाँ कौन है।

 

न सुनी है ताज़ा रिवायत हमने,

इस गम का निगहबाँ कौन है।

 

ले आया हूं लब पे हर्फ़-ए-तमन्ना ,

ता उम्र वो दीदा-ए-हैराँ कौन है।

 

ना मिले दिल-ए-बे-सब्र को करार,

इश्क़ में ग़म-ख़्वार नादाँ कौन है।

 

*  दरख़्शाँ -प्रकाशमान

दीदा-ए-हैराँ – चकित नेत्र

 

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