बचा के चलिए | Newsforum

©महेतरू मधुकर (शिक्षक), पचेपेड़ी, बिलासपुर, छत्तीसगढ़
फिज़ा प्रतिकूल, सांसों को छुपा के चलिए,
मौत का मौसम है, खुद को बचा के चलिए।
नाहक है ये रुप, धन, धर्म के गरभ गुमान,
दिल से भेद और नफरत मिटा के चलिए।
घमंड अकेला कर देगा यकीनन मेरे बंधु,
मोहब्बत में अदब से सर झूका के चलिए।
इस हलात से सबक सीखना होगा हमें,
जिंदगी को न ज्यादा उलझा के चलिए।
तेरी बारी भी आ जायेगी लापरवाह न बन,
स्वयं अपनी ही अर्थी न सजा के चलिए।
क्या भरोसा कब कैसे कहाँ क्या हो जाये,
यार उम्मीद और चिंता को हटा के चलिए।
हर लम्हा हसीन हो जायेगा जरा मुस्कुराइये,
जेहन में स्नेह, दर्द, परवाह न दबा के चलिए।