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The Land of Buddha : नरों में सिंह, वह नरसिंह कौन था…

The Land of Buddha : गौरवशाली नरसीह – गाथा

 

The Land of Buddha : गृहत्याग के सात साल बाद फाल्गुनी पूर्णिमा (पालि= फग्गुन मासो पुन्नमि) पर भगवान बुद्ध कपिलवस्तु पधारे थे. महल के झरोखे से राहुल ने भिक्षु संघ के आगे चल रहे कांतिमय, ओजस्वी व सुंदर श्रमण भिक्षु के बारे में जानना चाहा कि क्या यही मेरे पिता है? तो माता यशोधरा ने राहुल को बत्तीस लक्षणा बुद्ध के गुणों का बखान करते हुए यूं परिचय दिया था। इन नौ गाथाओं को ‘नरसीह गाथा’ के नाम से गौरव से गाया जाता है- (The Land of Buddha)

 

चक्क वरंकित रत्त-सुपादो,

लक्खण मण्डित आयत पण्हि ।

चामर छत्त विभूसित पादो,

एस हि तुम्ह पिता नरसीहो ॥1॥

 

जिनके रक्तवर्ण चरण चक्र से अलंकृत हैं, जिनकी लंबी एड़ी शुभ लक्षण वाली है, जिनके चरण पर चंवर तथा छत्र अंकित हैं, जो नरों में सिंह हैं, यही तेरे पिता हैं ॥1॥

 

सक्य कुमार वरो सुखुमालो,

लक्खण चित्तिक पुण्ण सरीरो।

लोक हिताय गतो नरवीरो,

एस हि तुम्ह पिता नरसीहो ॥2॥

 

जो कुमार श्रेष्ठ शाक्य सुकुमार हैं, जिनका संपूर्ण शरीर सुंदर लक्षणों से चित्रित है, नरों में वीर, जिन्होंने लोक-हित के लिए गृह-त्याग किया है; जो नरों में सिंह हैं, यही तेरे पिता हैं॥2॥(The Land of Buddha)

पुण्ण ससंक निभो मुखवण्णो,

देवनरान पियो नरनागो।

मत्त गजिन्द विलासित गामी,

एस हि तुम्ह पिता नरसीहो ॥3॥

 

जिनका मुख पूर्ण चंद्र के समान प्रकाशित है, जो नरों में हाथी के समान हैं. सभी देवताओं और नरों के प्रिय हैं, जिनकी चाल मस्त गजेंद्र की सी है; जो नरों में सिंह हैं, यही तेरे पिता हैं ॥3॥

 

खत्तिय सम्भव अग्ग कुलीनो,

देव मनुस्स नमस्सित पादो।

सील समाधि पतिहित चित्तो,

एस हि तुम्ह पिता नरसीहो ॥4॥

 

जो अग्र क्षत्रिय कुलोत्पन्न हैं, जिनके चरणों की सभी देव और मनुष्य वंदना करते हैं, जिनका चित्त शील-समाधि में सुप्रतिष्ठित है; जो नरों में सिंह हैं, यही तेरे पिता हैं ॥4॥(The Land of Buddha)

आयत युत्त सुसण्ठित नासो,

गोपखुमो अभिनील सुनेत्तो।

इन्दधनु अभिनील भमूको,

एस हि तुम्ह पिता नरसीहो ॥5॥

 

जिनकी नासिका चौड़ी तथा सुडौल है, बछिया की सी जिनकी बरौनियाँ हैं, जिनके नेत्र सुनील वर्ण हैं, जिनकी भौहें इन्द्र धनुष के समान हैं, जो नरों में सिंह हैं, यही तेरे पिता हैं ॥5॥

 

वसुबट्ट सुसण्ठित गीवो,

सीहहनु मिगराज सरीरो।

कञ्चन सुच्छवि उत्तम वण्णो,

एस हि तुम्ह पिता नरसीहो ॥6॥

 

जिनकी ग्रीवा गोलाकार है, सुगठित है, ठोड़ी सिंह के समान है तथा जिनका शरीर मृगराज के समान है, जिनका वर्ण सुवर्ण के समान उत्तम है; जो नरों में सिंह हैं, यही तेरे पिता हैं ॥6॥(The Land of Buddha)

 

सिनिद्ध सुगम्भीर मञ्जु सुघोसो,

हिङ्गुलबद्ध सुरत्त सुजिव्हो।

वीसति वीसति सेत सुदन्तो,

एस हि तुम्ह पिता नरसीहो ॥7॥

 

जिनकी वाणी स्निग्ध, गंभीर, सुंदर है; जिनकी जिह्वा सिंदूर के समान रक्त-वर्ण है, जिनके मुँह में श्वेत वर्ण के बीस-बीस दांत हैं; जो नरों में सिंह हैं, यही तेरे पिता हैं ॥7॥

अञ्जन वण्ण सुनील सुकेसो,

कञ्चन पट्ट विसुद्ध नलाटो।

ओसधि पण्डर सुद्ध सुउण्णो,

एस हि तुव्ह पिता नरसीहो ॥8॥

 

जिनके केश सुरमे के समान नीलवर्ण हैं, ललाट स्वर्ण के समान विशुद्ध है, जिनके भौंहों के बीच के बाल औषधि तारे के समान हल्का पीला है, जो नरों में सिंह हैं, यही तेरे पिता हैं ॥8॥(The Land of Buddha)

 

गच्छति नीलपथे विय चन्दो,

तारगणा परिवेठित रूपो।

सावक मज्झगतो समणिन्दो,

एस हि तुम्ह पिता नरसीहो ॥9॥

 

जो आकाश में चन्द्रमा की भांति बढ़े जा रहे हैं, जो श्रमणों में श्रेष्ठ श्रमणेन्द्र है और श्रमण भिक्खुओं से उसी प्रकार घिरे हुए हैं जैसे चंद्रमा तारों से. जो नरों में सिंह हैं, यही तेरे पिता हैं ॥9।।

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गौतम बुद्ध के गौरवशाली सौ नामों में से एक नाम ‘नरसिह’ भी है. बुद्ध को ‘सिह’ और बुद्ध वाणी को ‘सिंहनाद’ भी कहा गया है. सिंह जो विशाल जंगल में निडर अकेला विचरण करता है. सिंह के इसी प्रतीक को सम्राट अशोक ने सारनाथ के विशाल स्तम्भ के शिखर पर बनवाया जो आज हमारा राष्ट्रीय चिन्ह है. सिंह के कारण ही सिरीलंका ‘सिंहल देश’ कहलाता था. कालांतर में बुद्ध अनुयायी शासकों में राजगद्दी को ‘सिंहासन’ और अपने नाम के साथ ‘सिंह’ लगाने का गौरव भी चला. (The Land of Buddha)

 

नरों में यह श्रेष्ठ नर बुद्ध ‘नरसिंह’ शारीरिक रूप से एक मनुष्य की तरह ही था लेकिन इस गौरवशाली प्रतीक को बाद में हड़प कर, विकृत कर दिया और आधा मनुष्य और आधा सिंह का बना कर अवतार के रुप में प्रचारित किया गया. (The Land of Buddha)

 

 सबका मंगल हो….सभी प्राणी सुखी हो

The Land of Buddha
डॉ. एम एल परिहार

©डॉ. एम एल परिहार

परिचय- जयपुर, राजस्थान.

 

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