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पुरुष-प्रेम | ऑनलाइन बुलेटिन

©तथागत

परिचय– मुजफ्फरपुर, बिहार.


 

 

 

प्रश्न बड़ा ही विकट था,

क्योंकि उत्तर देना नहीं था,-

जीना था;

एक तरफ ईश्वर था,

दूसरे तरफ थी स्त्री,

और ठीक मध्य में खड़े पुरुष को,

इख़्तियार करना था,-

या ईश्वर,

या स्त्री।

 

ईश्वर के साथ था

अमरत्व, चिर-यौवन, शांति;

स्त्री के पास था

मृत्यु,क्लेश,बेचैनी!

 

अंगीकार करना कठिन था,

किसी एक को,

पुरुष के लिए,-

क्योंकि ईश्वर उसका आराध्य था,

और स्त्री, प्रेम;-

लेकिन करना तो था ही,

प्रश्न ही ऐसा था!

 

तो पुरुष ने कुछ ऐसा किया,

कि अपने स्नेह-सिक्त आंखों में,

उस क्षणभंगुर क्षण में,

ईश्वर को जितना भर सकता था,

भरा,

और उसका अंतिम अभिवादन कर,

स्त्री के साथ हो लिया।

 


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