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शायद वो भी कुछ…

©गायकवाड विलास

परिचय- मिलिंद महाविद्यालय लातूर, महाराष्ट्र


 

नीला नीला है सुन्दर प्यारा वो गगन,

अनगिनत तारें वहां सदियों से जगमगाते है।

शायद वो भी कुछ कहते हुए इस संसार को,

रात के अंधेरे में देखो कैसे चमचमाते है।

 

दिन के रोशनी में आए सूरज की धूप,

रात के समय रहता चांद का शीतल प्रकाश।

वक्त का समय-चक्र चलें निरंतर,

उसी के संग संग आगे बढ़ता ये संसार।

 

कुदरत की लीला है ये अद्भुत निराली,

सभी सजीवों के लिए बनी है आधार।

पेड़,पौधे हरियाली का करें सभी जतन,

सजीव सृष्टि से ही हरा-भरा और खुशहाल है ये संसार।

 

आसमां और धरती दोनों भी है अनमोल,

आसमां सूरज ही देता है पूरे संसार को रोशनी।

और धरती की गोद में है सारे संसार का बसेरा,

उन्हीं के वरदानों से ही श्रेष्ठ बनी है हमारी कहानी।

 

आसमां और धरती के बिना कोई भविष्य नहीं है हमारा,

ये सबकुछ जानकर भी हम यहां अंजान बने है।

मत उजाडो इस हरी-भरी सृष्टि को तुम सभी,

ये हरी-भरी सृष्टि ही हम सभी का जीवन बनी है।

 

नीला नीला है सुन्दर प्यारा वो गगन,

अनगिनत तारें वहां सदियों से जगमगाते है।

शायद वो भी कुछ कहते हुए इस संसार को,

आनेवाले कल के लिए नई सीख देते हुए चमचमाते है – – –

 

 

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