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अच्छाई का मुखौटा…

©अशोक कुमार यादव

परिचय- मुंगेली, छत्तीसगढ़.


 

अच्छाई का मुखौटा पहने बुराई छिपी है,

दूसरे के कंधे में बंदूक रख चला रही गोली।

खून से लथपथ अच्छाई का अधमरा शरीर,

पीड़ा से चीख कर मुँह से निकली बोली।।

 

मैंने क्या बिगाड़ा था किसी का जो मारा?

समाज को जगाने हेतु सत्य बात कही थी।

उन्नति होती, जन कर्म करके ऊपर उठते,

समुदाय को भड़काने की बात नहीं थी।।

 

रात की तीव्र सिसकियाँ दिन में दब जाती है,

हाथों में कलम लेकर लिखते सभी तकदीर।

परिस्थिति में परिवर्तन की महा क्रांति होती,

गरीबी की बेड़ियाँ तोड़कर बन जाते अमीर।।

 

मैं तो चला गया इस दुनिया को छोड़ कर,

लेकिन मेरी आवाज गूँजेगी हर सीने में।

तुम पर ही सवाल उठेगा, जवाब देना तुम?

मजा नहीं है चेहरा बदल जिंदगी जीने में।।

अशोक कुमार यादव

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