माँ की अभिलाषा…
©हिमांशु पाठक, पहाड़
परिचय- नैनीताल, उत्तराखंड.
हे वीर पुत्र! ये ध्यान रहे।
रण भूमि में, जो जाना तुम।
या तो अरि का,मस्तिस्क विदीर्ण कर,
रक्त सज्ज खडग,संग आना तुम।
या फिर वीर,धराशायी हो,
रणभूमि में, सो जाना तुम।
पर कायर बन,रणभूमि से ,
तुम,पीठ दिखा कर ,मत आना तुम।
यदि ऐसा हुआ,तो पुत्र सुनो!
रणभूमि से, तो शायद,
बचकर आओ तुम
पर अपनी ही जननी के हाथों,
ऐ पुत्र! वीरगति पाओ तुम।
क्योंकि कायर की माँ कहलाने ,
से अच्छा, तो पुत्र हीन होना अच्छा ।
या फिर वीर की माँ बनना ,
मेरे लिए,गौरवशाली हो।
और जो शहीद ,की माँ बन पाऊँ,
तो फिर ये मेरा,अहोभाग्य हो।
तो वीर पुत्र, ये आशा है,
कि तू मेरा,गौरव बनकर,
नभ- मण्डल ,पर चमकेगा।।
ये शीश, मेरा तब गर्वित हो ,
मुझको आनन्दित कर देगा।।
समाप्त
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