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भान नहीं हो रहा दिवस का | Newsforum

©सरस्वती साहू, बिलासपुर, छत्तीसगढ़


 

रिमझिम करती बारिश ने,

रवि किरणों को रोक रखा

भान नहीं हो रहा दिवस का,

क्या प्रातः, क्या संध्या है

 

निरंतर नाच रही है बरखा,

बूंदो के संग ता-ता-थै-या

भान नहीं हो रहा दिवस का,

क्या प्रातः, क्या संध्या है

 

पवन पुरवैया शीतल-शीतल,

नीर गगन से उतर रहे

भान नहीं हो रहा दिवस का,

क्या प्रातः, क्या संध्या है

 

प्रचण्ड दामिनी समुदित होकर,

हुंकार भरे मेघों ने गर्जन

भान नहीं हो रहा दिवस का,

क्या प्रातः, क्या संध्या है

 

ध्वनि अनवरत गुंजित होती,

टपटप-टपटप, झरझर-झरझर

भान नहीं हो रहा दिवस का,

क्या प्रातः, क्या संध्या है

 

प्यासी अचला की प्यास बुझाने,

आज निरंतर बरस रही

भान नहीं हो रहा दिवस का,

क्या प्रातः, क्या संध्या है  ….

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