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अब तो देख ऐ इन्सा…

©गायकवाड विलास

परिचय- मिलिंद महाविद्यालय लातूर, महाराष्ट्र


 

बारिश की बूंदें कभी हंसाती ।

घने काले बादल जगाते उम्मीद,

फिर चलती हवाएं वो उम्मीद जलाती।

 

सृष्टि चक्र की है ये अजब लीला,

कभी-कभी होती है बारिश धुंआधार।

बारिश बिना अधूरी संसार की आशाएं,

बूंद-बूंद पानी ही जीवन को बचाएं।

 

पर्यावरण का बिगड़ता हुआ संतुलन,

पेड़,पौधे सृष्टि ही इन्सानों का है जीवन।

रोकें सभी मिलकर तुम सृष्टि का विनाश,

नहीं तो एक दिन उजड़ जायेगा ये हरा-भरा चमन।

 

पेड़ पौधे, पशु पक्षी सभी की जरूरत पानी,

बंजर धरती का मंजर है बड़ी अनहोनी।

जिम्मेदार कौन उसे अब तो सोचो तुम?

उसी बूंद-बूंद पानी के लिए कल रोयेंगे हम।

 

सृष्टि का संहार भविष्य अपना अंधकार,

करें सृष्टि का जतन बने जीवन आधार।

कटते पेड़,चीख़ता हुआ सारा आसमां,

अब तो देख ऐ इन्सा तू उस कल की ओर।

 

बूंद-बूंद पानी है बड़ा ही अनमोल,

जल ही जीवन,जल ही है प्रगति का द्वार।

सृष्टि का करें संवर्धन,चलाओ अभियान,

सृष्टि बिना नहीं आयेगी इस संसार में बहार – – – इस संसार में बहार।

 

Gaikwad-Vilas-Latur-Maharashtra
गायकवाड विलास

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