ऑनलाइन बुलेटिन: राही छूट जाते है पल में…
©गायकवाड विलास
परिचय- मिलिंद महाविद्यालय लातूर, महाराष्ट्र
समझ से समझ आए ऐसा ये ज़माना नहीं,
अंजान है सभी वो पल,जिसे हम जानते ही नहीं।
राहों पर राही संग संग है हमारे फिर भी,
सभी के मंजिलें है अलग-अलग और ये चलते रास्ते भी।
ना समझ आते है चेहरे,ना वो मन की गहराई,
कौन सच्चा और कौन झूठा यही है वो बड़ी कठिनाई।
पहेलियां बनी है ये जिंदगी यहां पल-पल राहों पर,
ऐसे हालातों में कहां मिलते है हमें यहां सच्चे रहबर।
इस मतलबी जमाने में कौन किसका भला चाहें,
हर जगह बेवफाई और पल-पल बदलती निगाहें।
अब देखी नहीं जाती सफलताएं इस ज़माने को,
ऐसे जमाने में कैसे फैलाएं किसी के सामने अपनेपन की वो बाहें।
यकीं करें किस पर,अपने भी यहां अपने नहीं रहें इस ज़माने में,
कौन जाने अब यहां पर,क्या है किसी के निगाहों में?
वक्त और हालात देखकर,बदल रहा है ये ज़माना पल-पल,
ऐसे जमाने में कहां ढूंढे वो सच्चाई भरा ममता का आंचल।
समझ से समझ आए ऐसा ये ज़माना नहीं,
अंजान है सभी वो पल,जिसे हम जानते ही नहीं।
मुसाफिर बनके निकले है सभी जिंदगी के इस राहों पर,
राही छूट जाते है पल में और साया ही बना है यहां सिर्फ अपना हमसफर – – –
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