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जब मेरा शहर सोता है……

©अमिता मिश्रा

परिचय- बिलासपुर, छत्तीसगढ़

जब मेरा शहर सोता है

नींद होती सबकी एक जैसी

पर सपने अलग-अलग होते है

कोई छूना चाहें आसमान

तो कोई धरती पर जगह तलाशता है

कोई दो वक्त की रोटी के लिए भागता है

तो कोई दो रोटी खाने के लिए

कोई अपना नाम, पहचान बनाना चाहता है

तो खुद से अंजान खुद को ही तलाशता है

कोई मखमली बिस्तर पर करवटें बदलता है

 

तो कोई जमीन पर मीठी नींद सोता है

सपनों में भी कोई अपना चाहता है

तो कोई अपनों से दूर भागता है

जब सारा शहर सोता है मेरा मन यही सोचता है

गहरी मीठी नींद पर हक़ सबका है

मजदूर दिन भर की थकान लिए सोता है

तो कोई चैन की नींद के लिए रात भर जागता है

सोचती हूं कभी की कोई भूखा सो जाता है तो

कोई खाना कूड़ेदान में फेंक आता है

जब सारा शहर सोता है मैं यही सोचती हूं

की कोई ऐसी रात भी आएगी क्या?

की जब कोई भूखा ना रहे, जिन्हें आराम की मीठी नींद मिल सके।

ना कोई उलझन ना हो गिला शिकवा

बस एक प्यारी सी नींद और नई सुबह का इंतजार हो

सबके सपने पूरे हो और उम्मीद भी

जिस शांति का अनुभव हमें रात में महसूस होता है उतनी ही शांति हमारे दिन में भी हो।

उस ईश्वर का धन्यवाद जिसने हमें सुक़ून भरी रात और साहस भरा दिन दिया

Essay on Azadi ka Amrit Mahotsav | Onlinebulletin.in
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