युद्ध के बाद की तस्वीर l ऑनलाइन बुलेटिन
©नीलोफ़र फ़ारूक़ी तौसीफ़
परिचय– मुंबई.
अजीब-व-ग़रीब तस्वीर, आँखों में छाई है।
बदहाली, बेबसी, भुखमरी नज़र आई है।
उम्र गुज़ार दी, ईंट-से-ईंट जोड़ घर बनाने में,
आग लगाकर घरों को, ख़ूब सितम ढाई है।
माँ का आँचल छूटा, कहीं पिता का साया,
यतिमी देख यहाँ, ख़ून आँखों में उतर आया।
सर्वश्रेष्ट और महान बनने की जिज्ञासा में,
इंसान तो अपनी इंसानियत कुचल आया।
चारों ओर पसरा सन्नाटा, शहर ख़ामोश हुआ,
ज़ालिम करके सितम यहाँ, कहाँ रूपोश हुआ।
बारूद का ढेर लगा है, शहर बन गया खंडहर,
नशा चढा कर रुतबे का, देखो मदहोश हुआ।
ज़ुल्म के शिकार बच्चों को, कहीं, कोई ले जाएगा,
पढा-लिखाकर झूठी बातें, बारूद बनाया जाएगा।
जो कभी लाडली हुआ करती थीं बेटियाँ घर की,
दो रोटी की ख़ातिर, बाज़ार में दाम लगाया जाएगा।
इतिहास के पन्नों में, दर्ज हो जाएगी एक तहरीर,
युद्ध के बाद की , आख़िर कैसी होगी ये तस्वीर,
आँसू, दर्द, ग़म, तन्हाई दे गया ज़ालिम सौगात में,
पल में पलट कर रख दी थी, कितनों की तक़दीर।
पल में पलट कर रख दी थी, कितनों की तक़दीर।