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वादा दिवस l ऑनलाइन बुलेटिन

©नीलोफ़र फ़ारूक़ी तौसीफ़, मुंबई


 

 

 

इश्क़ ही तो है, हद से गुज़र जाने दीजिए।

दरिया-ए-इश्क़ में आज उतर जाने दीजिए।

 

फ़लक से तोड़ लाये, कहकशाँ का झुरमुठ,

इन तारों से महफ़िल सजाने दीजिए।

 

एक धागे के सहारे शमा जली है रात-भर,

उसकी आग़ोश में परवाने को जल जाने दीजिए।

 

महबूब का नशा छाया है, इस दिल पे आज,

रूह से रूह का मिलन हो जाने दीजिए।

 

ये साक़ी, ये शबाब से रूबरू करा दूँ ज़रा,

हसीन शाम है मोहब्बत का जाम पिलाने दीजिए।

 

लिखा है लहू से महबूब का नाम हथेली पे,

गिरे हर क़तरे को, लबों से लगाने दीजिए।

 

लैला-क़ैस वो शीरीं फरहाद के किस्से,

ज़माने भर को फिर याद दिलाने दीजिए।

 

जिस्म से रूह जुदा हो भी तो ग़म कैसा,

मौत ही तो है, हक़ीक़त से सामना कराने दीजिए।

 

ये खुली आंखें इंतज़ार करेंगीं क़यामत तक,

वादा-ए-वफ़ा ज़रा शौक़ से निभाने दीजिए।

वादा-ए-वफ़ा ज़रा शौक़ से निभाने दीजिए।

 

 

 


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