साधो सद्गुण साधिये …

©सरस्वती साहू, बिलासपुर, छत्तीसगढ़
साधो सद्गुण साधिये, धरो न रावण रूप
हर लिये जग जननी को, वह लंका के भूप
धरे रूप बहरूपिया, चंदन, तिलक लगाए
संत कौन बहरूपिया, देख समझ ना आए
धरे आडम्बर चोला, छल, कपट और लोभ
मितभाषा के आड़ में, लूट रहे हैं लोग
तन उजला करता रहा, मन तो रहा मलीन
त्याग कपट मन साध ले, ईश्वर में तल्लीन
साधो सद्गुण साधिये, प्रणय भाव नित आए
राखो शुचि मन भावना, तब तो संत कहाए …