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औरत | ऑनलाइन बुलेटिन

©अनिल बिड़लान

परिचय : हरियाणा


 

 

कौन कहता है कि कदम से कदम नहीं मिलाती औरत।

बस घर की दीवारों को ही सजाती संवारती है औरत।।

 

 

क्या परिस्थितिवश हर रुप धारण नहीं करती औरत।

क्या सदियों से ज्यादा  पीड़ा सहन नहीं करती औरत।।

 

 

क्या माँ बहन बेटी बीवी का चरित्र नहीं बनती औरत ।

क्या दुखो में आदमी के आगे ढाल नहीं बनती औरत।।

 

क्या खेल-कूद नभ या अंतरिक्ष में नहीं उड़ती औरत ।                       

क्या हर क्षेत्र में अब कंधे से कंधा नहीं मिलाती औरत।।                           

 

 

क्या संवेदनाएं कल्पनाएं या इच्छाएं नहीं दबाती औरत।                                

क्या सहयोग आदर स्नेह आदमी से नहीं चाहती औरत।।    

 


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