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महाराष्ट् में राज ठाकरे “महायुति” के 45 सीटों को जीतने के लक्ष्य में मददगार हो सकते हैं

मुंबई
 पिछले दो सालों सर्वाधिक राजनीतिक उठापठक महाराष्ट्र में देखने को मिली है। 2024 के लोकसभा चुनावों से पहले महाराष्ट्र नव निर्माण सेना (MNS) चीफ राज ठाकरे के बीजेपी के साथ आने की अटकलों ने फिर से राज्य की राजनीति को गरमा दिया है। सवाल खड़ा हो रहा है कि अगर राज ठाकरे NDA (महाराष्ट्र में महायुति यानी ग्रैंड अलायंस) का हिस्सा बनते हैं तो बीजेपी को कितना फायदा होगा? महाराष्ट्र में राज ठाकरे बीजेपी के साथ आएंगे या फिर इससे पहले बात बीजेपी की। बीजेपी की अगुवाई वाले महायुति गठबंधन (बीजेपी, शिवसेना-शिंदे, एनसीपी अजित पवार) ने राज्य की 48 सीटों में से 45 सीटें जीतने का टारगेट तय किया है। महायुति गठबंधन के नेता देवेंद्र फडणवीस, एकनाथ शिंदे और अजित पवार अब इसी टारगेट को लेकर राज्य में सियासी समीकरण बैठा रहे हैं। राजनीतिक हलकों में चर्चा है कि राज ठाकरे महायुति के 45 सीटों को जीतने के लक्ष्य में मददगार हो सकते हैं। यही वजह है कि मुंबई बीजेपी के नेताओं ने राज ठाकरे का मन टटोलना शुरू कर दिया है।

क्या है मनसे की ताकत?
राज ठाकरे की अगुवाई वाली महाराष्ट्र नव निर्माण (मनसे) 17 साल पुरानी पार्टी है। पार्टी ने 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव नहीं लड़ा था। इससे पहले पार्टी ने 2009 में लोकसभा चुनाव लड़ा था तो शिवसेना को नुकसान उठाना पड़ा था। राज्य की 9 से 10 सीटों पर शिवसेना को नुकसान पहुंचाया था। कई सीटों पर मनसे के उम्मीदवारों को 1 लाख तक वोट हासिल हुए थे। इसके चलते राज्य के 2009 के चुनावों में कांग्रेस को 17 और एनसीपी को 8 सीटें हासिल हुई थी, जब बीजेपी और शिवसेना 9 और 11 पर सीमित रह गई थी। इसी साल हुए विधानसभा चुनावों में पार्टी को 13 सीटों पर जीत भी मिली थी। मुंबई में मनसे को 24 फीसदी वोट हासिल हुए थे और शिवसेना 18 फीसदी वोट के साथ पीछे रह गई थी। तब राज्य में मनसे को 5.7 फीसदी वोट मिले थे।

शिवसेना को हुआ था नुकसान
मनसे के आक्रामक चुनाव प्रचार ने शिवसेना को भारी नुकसान पहुंचाया था। कुछ जगहों पर मनसे से एनसीपी को भी नुकसान हुआ था। मनसे ने लालबाग-परेल-दादर-माहिम में अपने पारंपरिक गढ़ों में सेना के उम्मीदवारों को हराया। तीन दशकों से अधिक समय तक, परेल, दादर और माहिम विधानसभा क्षेत्रों पर सेना का कब्जा था। परिसीमन के बाद निर्वाचन क्षेत्रों को विलय कर दिया गया और उनका नाम बदलकर सेवरी और माहिम कर दिया गया। मनसे की 2009 की ताकत को बीजेपी 2024 में आजमाना चाहती है। राज ठाकरे के बीजेपी के साथ आने से शिवसेना (उद्धव गुट) को नुकसान हो सकता है। बीजेपी महाविकास आघाड़ी को और कमजोर करके अपनी राह आसान करना चाहती है।

बीजेपी को होगा सीटों का फायदा
 राज ठाकरे की जो राजनीति है। वह काफी आक्रामक है। मुझे नहीं लगता है कि प्री-पोल अलायंस में एनडीए के साथ आने चाहेंगे। वे पोस्ट पोल अलायंस के लिए राजी हो सकते हैं। सावरकर कहते हैं कि अगर मनसे चुनाव लड़ेगी तो निश्चित तौर पर उद्धव गुट को ही नुकसान होगा? चर्चा है कि शिवसेना उद्धव गुट के नुकसान में ही बीजेपी का फायदा छिपा हुआ है। वे एनडीए के साथ आएंगे तो शिवसेना उद्धव गुट की मजबूत सीटों पर मनसे चुनाव लड़ सकती है। दूसरी संभावना यह भी है कि वे चुनाव लड़े और बाद में महायुति का हिस्सा बनें। इसका फैसला राज ठाकरे को करना है? मनसे ने 2009 के लोकसभा चुनावों में 11 सीटों पर उम्मीदवार खड़े किए थे। राजनीतिक हलकों में चर्चा है कि पार्टी अगर चुनावों में उतरती है तो 2009 की तर्ज पर कुछ सीटों पर चुनाव लड़ सकती है। मनसे के चुनाव लड़ने से मुंबई सभी छह सीटें यूपीए को मिली थीं। पांच सीटों पर कांग्रेस और एक सीट पर एनसीपी जीती थी।

किन क्षेत्रों में है प्रभाव?
महाराष्ट्र में मनसे का प्रभाव पूरे राज्य में नहीं है। शहरी इलाकों में मनसे की उपस्थिति है। मुंबई मेट्रोपॉलिटन रीजन (MMR), नासिक और पूना में मनसे का प्रभाव है। हाल ही में शिवसेना उद्वव गुट ने नासिक में ही अपनी बड़ी रैली की थी। अगर मनसे के उम्मीदवार चुनाव लड़ते हैं तो शिवसेना को बड़ा नुकसान होगा। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि मनसे की ताकत उसकी आक्रामकता है। एक संभावना यह भी है अगर वे महायुति में आएंगे तो उन्हें शांत ही रहना पड़ेगा। अभी तक मनसे सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलती आई है। ऐसे में अगर राज ठाकरे 2024 के लोकसभा चुनावों में अपने पार्टी को उतारते हैं तो निश्चित तौर राज्य की राजनीति में नई हलचल होगी। मुंबई के साथ नासिक और पूना के क्षेत्रों में इसका प्रभाव भी दिखाई पड़ेगा।


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